सिकंदर को हरानेवाली कठगणराज्य की राजकुमारी कार्विका

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मैं मनीषा सिंह आज लिखनेवाली हूँ ,राजकुमारी कार्विका सिंधु नदी के उत्तर में कठगणराज्य की राज्य की राजकुमारी थी । राजकुमारी कार्विका बहोत ही कुशल योद्धा थी रणनीति और दुश्मनों के युद्ध चक्रव्यूह को तोड़ने में पारंगत थी राजकुमारी कार्विका ने अपने बचपन की सहेलियों के साथ फ़ौज बनाई थी इनका बचपन के खेल में भी शत्रुओं से देश को मुक्त करवाना और फिर शत्रुओं को दण्ड प्रदान करना यही सब होते थे राजकुमारी में वीरता और देशभक्ति बचपन से ही थी जिस उम्र में लड़कियाँ गुड्डे गुड्डी का शादी रचना इत्यादि खेल खेलते थे उस उम्र में कार्विका राजकुमारी को शत्रु सेना का दमन कर के देश को मुक्त करवाना शिकार करना इत्यादि ऐसे खेल खेलना पसंद थे , राजकुमारी धनुर्विद्या के सारे कलाओं में निपुर्ण थे , तलवारबाजी जब करने उतरती थी दोनों हाथो में तलवार लिये लड़ती थी और एक तलवार कमर पे लटकी हुई रहती थी अपने गुरु से जीत कर राजकुमारी कार्विका ने सबसे सुरवीर शिष्यों में अपना नामदर्ज करवा लिया था । दोनों हाथो में तलवार लिए जब अभ्यास करने उतरती थी साक्षात् माँ काली का स्वरुप लगती थी, भाला फेकने में अचूक निसाँचि थी , राजकुमारी कार्विका गुरुकुल शिक्षा पूर्ण कर के एक निर्भीक और शूरवीरों के शूरवीर बन कर लौटी अपने राज्य में, पर अब उसकी परीक्षा की बारी थी कुछ साल बीतने के साथ साथ यह ख़बर मिला राजदरबार से सिकंदर लूटपाट करते हुए कठगणराज्य की और बढ़ रहा हैं भयंकर तबाही मचाते हुए सिकंदर की सेना नारियों के साथ दुष्कर्म करते हुए हर राज्य को लूटते हुए आगे बढ़ रही थी, इसी खबर के साथ वह अपनी महिला सेना जिसका नाम राजकुमारी कार्विका ने चंडी सेना रखी थी जो कि ८००० से ८५०० नारियों की सेना थी कठगणराज्य की यह इतिहास की पहली सेना रही जिसमे महज ८००० से ८५०० विदुषी नारियाँ थी। कठगणराज्य जो की एक छोटी सा राज्य था इसलिए अत्यधिक सैन्यबल की इस राज्य को कभी आवस्यकता नहीं पड़ी थी, ३२५(इ.पूर्व) में सिकन्दर नामक राक्षस के अचानक आक्रमण से राज्य को थोडा बहोत नुक्सान हुआ पर राजकुमारी कार्विका पहली योद्धा थी जिन्होंने सिकंदर से युद्ध किया था सिकन्दर की सेना लगभग १,५०,००० थी और कठगणराज्य की राजकुमारी कार्विका के साथ आठ हज़ार वीरांगनाओं की सेना थी यह एक ऐतिहासिक लड़ाई थी जिसमे कोई पुरुष नहीं था सेना में सिर्फ विदुषी वीरांगनाएँ थी । राजकुमारी और उनकी सेना अदम्य वीरता का परिचय देते हुए सिकंदर की सेना पर टूट पड़ी, युद्धनीति बनाने में जो कुशल होता हैं युद्ध में जीत उसी की होती हैं रण कौशल का परिचय देते हुए राजकुमारी ने सिकंदर से युद्ध की थी,

सिकंदर ने पहले सोचा “सिर्फ नारी की फ़ौज है मुट्ठीभर सैनिक काफी होंगे” पहले २५००० की सेना का दस्ता भेजा गया उनमे से एक भी ज़िन्दा वापस नहीं आ पाया , और राजकुमारी कार्विका की सेना को मानो स्वयं माँ भवानी का वरदान प्राप्त हुआ हो बिना रुके देखते ही देखते सिकंदर की २५,००० सेना दस्ता को गाजर मूली की तरह काटती चली गयी , राजकुमारी की सेना में ५० से भी कम वीरांगनाएँ घायल हुई थी पर मृत्यु किसी को छु भी नहीं पायी थी । सिकंदर की सेना में सायद ही कोई ज़िन्दा वापस लौट पाया थे ।
दूसरी युद्धनीति के अनुसार अब सिकंदर ने ४०,००० का दूसरा दस्ता भेजा उत्तर पूरब पश्चिम तीनों और से घेराबन्दी बना दिया राजकुमारी सिकंदर जैसा कायर नहीं थी खुद सैन्यसंचालन कर रही थी उनके निर्देशानुसार सेना तीन भागो में बंट कर लड़ाई किया राजकुमारी के हाथों बुरी तरह से पस्त हो गयी सिकंदर की सेना।
तीसरी और अंतिम ८५,०००० दस्ताँ का मोर्चा लिए खुद सिकंदर आया सिकंदर के सेना में मार काट मचा दिया नंगी तलवार लिये राजकुमारी कार्विका ने अपनी सेना के साथ सिकंदर को अपनी सेना लेकर सिंध के पार भागने पर मजबूर कर दिया इतनी भयंकर तवाही से पूरी तरह से डर कर सैन्य के साथ पीछे हटने पर सिकंदर मजबूर होगया । इस महाप्रलयंकारी अंतिम युद्ध में कठगणराज्य के ८,५०० में से २७५० साहसी वीरांगनाओं ने भारत माता को अपना रक्ताभिषेक चढ़ा कर वीरगति को प्राप्त कर लिया जिसमे से नाम कुछ ही मिलते हैं इतिहास के दस्ताबेजों में गरिण्या, मृदुला, सौरायमिनि, जया यह कुछ नाम मिलते हैं इस युद्ध में जिन्होंने प्राणों की बलिदानी देकर सिकंदर को सिंध के पार खदेड़ दिया था । सिकंदर की १,५०,००० की सेना में से २५,००० के लगभग सेना शेष बची थी , हार मान कर प्राणों की भीख मांग लिया और कठगणराज्य में दोबारा आक्रमण नहीं करने का लिखित संधी दिया राजकुमारी कार्विका को ।
संदर्व-:
१) कुछ दस्ताबेज से लिया गया हैं पुराणी लेख नामक दस्ताबेज
२) राय चौधरी- ‘पोलिटिकल हिस्ट्री आव एशेंट इंडिया’- पृ. 220)
३) ग्रीस के दस्ताबेज मसेडोनिया का इतिहास ,
Hellenistic Babylon नामक दस्ताबेज में इस युद्ध की जिक्र किया गया हैं ।
राजकुमारी कार्विका की समूल इतिहास को नष्ठ कर दिया गया इनकी इतिहास बहोत ढूंढने पर दो ही जगह से केवल दो पन्नों में खत्म कर दिया गया इस वीरांगना के इतिहास को ,यह पहली योद्धा थी जिन्होंने सिकंदर को परास्त किया था ३२५(ई.पूर्व) में। समय के साथ साथ इन इतिहासों को नष्ठ कर दिया गया और भारत का इतिहास वामपंथी और इक्कसवीं सदी के नवीनतम इतिहासकार जैसे रोमिला थाप्पर और भी बहोत सारे इतिहासकार ने भारतीय वीरांगनाओं के नाम कोई दस्तावेज़ नहीं लिखा या यह भी कह सकते हैं भारतीय नारियों को सनातन धर्म से दूर करने के लिए सनातन धर्म के नारियों को हमेसा घूँघट धारी और अबला दिखाया हैं , इतिहासकारों ने भारत के ऋषिमुनि एवं सनातन धर्म को पुरुषप्रधान एवं नारी विरोधी संकुचित विचारधारा वाला धर्म साबित करने के लिये इन इतिहासो को मिटा दिया गया , इन वामपंथी और खान्ग्रेस्सी इतिहासकारो का बस चलता तो रानी लक्ष्मीबाई का भी इतिहास गायब करवा देते पर ऐसा नहीं कर पाये क्यों की १८५७की ऐतिहासिक लड़ाई को हर कोई जानता हैं ।
लव जिहाद तब रुकेगा जब इतिहासकार ग़ुलामी और धर्मनिरपेक्षता का चादर फ़ेंक कर असली इतिहास रखेंगे सम्रागी नागनिका , राजकुमारी कार्विका ऐसे ऐसे वीरांगना सिर्फ सनातन धर्म में ही जन्म लिए हैं और ऐसी वीरांगनाओं का जन्म केवल सनातन धर्म में ही संभव हैं जिस सदी में यह वीरांगना देश पर राज करना शुरू की थी उस समय सायद कोई दूसरा मजहब या रिलिजन में नारियों को सायद ही इतनी स्वतंत्रता होगी । सनातन धर्म का सर है नारी और धर पुरुष हैं सर के बिना धर बेकार हैं ।जितना हो पाया इस वीरांगना की खोई हुई इतिहास आप सबके सामने लायी हूँ । कोई त्रुटि रह गई हो तो क्षमा चाहूँगी , और भारत सरकार से अनुरोध करुँगी महामान्य प्रधानमंत्री महोदय जी से की सच सामने लाने की अनुमति दें इंडियन कॉउंसिल ऑफ़ हिस्टोरिकल रिसर्च को ।
वन्देमातरम्
जय माँ भवानी ।
लेखिका-: मनीषा सिंह

प्रधान मंत्री नरेंद्रा मोदी ने ये क्या कर दिया जनता हैरान

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फ़िल्म डर मैं आकाश चौपड़ा ने विलन की महिमा कर मुझे धोका दिया था – सन्नी देओल

शाहरुख खान द्वारा डर फ़िल्म में लाइमलाइट चुरा लेने के बाद सनी देओल ने गुस्से में अपनी पैंट उतार डाली थी।

डर फ़िल्म करने के बाद सन्नी देओल और शाहरुख खान ने एक-दूसरे से 16 साल तक बात नही की थी। शाहरुख ने 1993 की डर फ़िल्म में विलन की भूमिका निभाई, ऐसा माना जाता था कि निर्देशक आकाश चौपड़ा द्वारा फिल्म में एक अधिक प्रशंसक-अनुकूल चित्रण किया गया था। इंडिया टीवी के शो आप की अदालत पर सनी ने एक असहमति प्रकट की थी, जो उन्होंने चौपड़ा के साथ फिल्म के सेट पर की थी, और इससे उन्हें बोहोत गुस्सा भी आया था।

सनी ने कहा कि शाहरुख के किरदार को फिल्म मे विलन होने के बावजूद कैसे विलन का महिमा मंडन किया गया और यह विलन का रोल उनके कमांडो किरदार को कैसे प्रभावित करता है, इस पर विशेष रूप से अपराध करने के बाद, मैंने उस दृश्य के बारे में यश चौपड़ा के साथ गर्मजोशी से चर्चा की। मैंने यह समझाने की कोशिश की कि मैं फिल्म में एक कमांडो ऑफिसर हूं। मेरा किरदार एक विशेषज्ञ और फिट है, फिर यह विलन लड़का मुझे आसानी से कैसे हरा सकता है? यदि वह मुझे नहीं देख सकता है तो वह मुझे हरा सकता है। अगर मैं उसे देख रहा हूं, तो वह मुझे छुरा मार सकता है, तो मुझे कमांडो नहीं कहा जाएगा।

निर्देशक द्वारा सनी की शिकायतों पर ध्यान देने से इनकार करने के बाद, अभिनेता सन्नी देओल ने अनजाने में गुस्से में अपनी पैंट उतार दी थी। गुस्से मे मुझे यह भी महसूस नहीं हुआ कि मैंने अपने हाथों से अपनी पैंट को चीर दिया था, उन्होंने कहा। फिल्म रिलीज़ होने के 16 साल बाद तक अभिनेताओं ने बात नहीं की, लेकिन सनी ने कहा कि यह जानबूझकर नहीं किया गया था। “ऐसा नहीं है कि मैंने बात नहीं की है, लेकिन मैंने अभी खुद को अलग कर दिया है और मैं वैसे भी सामाजिक रूप से बहुत कुछ नहीं करता हूं। इसलिए हम कभी नहीं मिले, तो कभी बात नही हो पाई।

एक पूर्व प्रेस वार्ता में, सनी ने कहा था, “की अंत में, लोगों ने मुझे फिल्म में प्यार किया। वे शाहरुख खान से भी प्यार करते थे। फिल्म के साथ मेरा एकमात्र मुद्दा यह था कि मुझे पता नही था कि वे खलनायक की महिमा मंडन करेंगे। मैं हमेशा खुले दिल से फिल्मों में काम करता हूं और इंसान पर भरोसा करता हूं। मैं भरोसे के साथ काम करने में विश्वास रखता हूं। दुर्भाग्य से, हमारे पास कई अभिनेता और सितारे हैं जो इस तरह से काम को नहीं करते हैं। हो सकता है कि वे अपने स्टारडम को प्राप्त करना चाहते हैं।

ऐसा लगता है कि जब सनी ने अपने बेटे करण के फिल्मी डेब्यू की घोषणा की थी, तब हट्रेट दफन हो गया था। शाहरुख ने युवा अभिनेता को बधाई देने के लिए ट्विटर पर लिखा, “सभी को शुभकामनाएं। वह आपके जैसा ही सख्त और सौम्य दिखता है। सभी अच्छी चीजें उसके रास्ते में आ सकती हैं। ”

इस ब्रह्मांड में कुल कितनी ऊर्जा (एनर्जी) है?

ब्रह्मांडीय ऊर्जा

6 अगस्त, 1945, को विश्व ने पहली परमाणु विस्फ़ोट त्रासदी का साक्षात्कार किया था। इसी दिन अमेरिका द्वारा जापान पर गिराए गए “लिटिल बॉय” नामक परमाणु हथियार में 64 किलो यूरेनियम का इस्तेमाल किया गया था। इस 64 किलो का महज 900 ग्राम हिस्सा ही बम की प्रक्रिया में इस्तेमाल हो सका था और उस 900 ग्राम में भी… महज 0.7 ग्राम यूरेनियम ही पूरी तरह विशुद्ध ऊर्जा में तब्दील हो पाया था। इस तरह, देखा जाए तो, लिटिल बॉय बेहद फिसड्डी बम था। फिर भी, महज 0.7 ग्राम यूरेनियम से, एक कागज के नोट से भी हल्की सामग्री का विस्फोट एक झटके में सवा लाख लोगों के लिए काल का पर्याय बन गया। 


आइंस्टीन ने हमें बताया कि पदार्थ और ऊर्जा एक ही चीज़ हैं। पदार्थ को ऊर्जा और ऊर्जा को पदार्थ में तब्दील किया जा सकता है। अगर आप एक स्वस्थ वयस्क मनुष्य हैं और आपके शरीर को 100% एफिशिएंसी के परमाणु बम में तब्दील कर दिया जाए तो आप अकेले ही वुहान, इस्लामाबाद, लाहौर जैसे 30 बड़े शहरों को मिट्टी में मिला सकते हैं। 

देखा जाए तो संसार का प्रत्येक कण खुद में ही एक छोटा-मोटा एनर्जी पावर हाउस है। और ब्रह्मांड में 10^80 इलेक्ट्रान-प्रोटान जैसे मूलभूत कण… जी हाँ… 10 के आगे 80 बार शून्य… . इस तरह अक्सर यह जिज्ञासा उठती है कि ब्रह्मांड में टोटल कितनी ऊर्जा होगी? शायद बहुत बहुत ज्यादा? Well… जवाब जान के आपको आश्चर्य और मायूसी दोनों होगी। सच तो यह है कि… ब्रह्मांड में कोई ऊर्जा है ही नहीं… ब्रह्मांड में ऊर्जा की मात्रा “शून्य” है। . मैटर पार्टिकल्स, एन्टीमैटर तथा प्रकाश कणों में निहित ऊर्जा “पॉजिटिव” होती है, वहीं यह पॉजिटिव ऊर्जा अपने चारों ओर ग्रेविटी की शक्ति से निर्मित एक ऐसा “कुआं” (Gravity well) निर्मित करती है जो “नेगेटिव एनर्जी” से बना होता है। पृथ्वी समेत आकाशीय पिंड नेगेटिव एनर्जी के इसी गड्ढे में फंसे हुए सूर्य की परिक्रमा करने पर बाध्य हैं। इस ब्रह्मांड में जितनी पॉजिटिव एनर्जी है, ठीक उतनी ही, बिना किसी अंतर के, उसी मात्रा में ग्रेविटेशनल ऊर्जा के रूप में नेगेटिव एनर्जी भी मौजूद है। 

ब्रह्मांड का अस्तित्व इस पॉजिटिव-नेगेटिव एनर्जी की कशमकश पर टिका हुआ है। पॉजिटिव और नेगेटिव एक-दूसरे को कैंसिल आउट करते हैं। इन्हे मिलाइये, और उत्पन्न परिणाम शून्य होगा। . इसे बेहतर समझने के लिए एक मैदान की कल्पना कीजिये। आप मैदान से मिट्टी निकालते जाइए और मिट्टी के इस्तेमाल से एक गगनचुंबी ईमारत बनाते जाइए… जितनी ऊंची इमारत होगी, गड्ढा भी उतना ही गहरा होता जाएगा। ईमारत को तोड़ कर मिट्टी गड्ढे में भर दीजिये, पॉजिटिव एनर्जी यानी ईमारत गायब, नेगेटिव एनर्जी यानी गड्ढा भी गायब… शेष रह जाएगा सपाट मैदान यानी शून्य… यह कुछ ऐसा ही है मानों आप जीरो बैलेंस के साथ क्रेडिट कार्ड के सहारे शॉपिंग कर रहे हैं। जितना सामान खरीदेंगे, उतना ही बैलेंस नेगेटिव होगा। सामान बेच के लोन भर दीजिये, बैलेंस फिर से शून्य हो जाएगा। . तो, सारांश यह है कि ब्रह्मांड में प्रत्येक पॉजिटिव एनर्जी अपने चारों ओर नेगेटिव एनर्जी का आवरण निर्मित करती है। ब्रह्मांड का अस्तित्व इसी रस्साकशी पर टिका है। पॉजिटिव का अस्तित्व नेगेटिव पर आधारित है। पॉजिटिव-नेगेटिव को मिला दीजिये… अस्तित्व का भ्रम टूट जाएगा.. रह जायेगा सिर्फ़ “शून्य” . तो दोस्तों, देखा जाए तो ब्रह्मांड को बनाने के लिए तकनीकी तौर पर कोई ऊर्जा कभी खर्च ही नहीं हुई। सब कुछ शून्य है।

कोरोना वायरस से बचना है तो योग और आयुर्वेद से बढ़ाये रोग प्रतिरोधक छमता, हमेशा रहेंगें स्वस्थ।

योग और आयुर्वेद
जैसा कि आप सभी जानते है कोरोना वायरस की अभी तक कोई दवाई नही बन पाई है जिससे कि हम कोरोना वायरस की चपेट मे आने पर किसी दवाई को लेकर ठीक हो सके। अभी अगर हम  इस बीमारी से लड़ सकते है तो वो है हमारी इम्युनिटी यानी रोग प्रतिरोधक छमता। तो आइए जानते है हम अपनी रोग प्रतिरोधक छमता को कैसे योग और आयुर्वेद से बढ़ाकर स्वस्थ रह सकते है।

योग से रोग प्रतिरोधक छमता बढ़ाये।
1) अनुलोम-विलोम प्राणायाम : इसमें दायीं नाक से दो सैकंड तक सांस लेकर चार सैकंड सांस काे राेककर बायीं नाक से एक सैकंड में सांस को छोड़ा जाता है। इसके बाद बायीं नाक से हमे यहीं प्रक्रिया वापस दाेहरानी होती है। इस योग को रोज सुबह 15 मिनट तक जरूर करे।
2)कपाल भांति प्राणायाम: यह प्राणयाम पदमासन लगाकर ध्यान मुद्रा में बैठकर किया जाता है। इसमें सांस को शरीर के अंदर लेकर बाहर की तरफ वापस निकालना पड़ता है। इस योग को रोज सुबह 15 मिनट तक करे।
3)त्रिकोणासन : त्रिकोणासन यानी त्रिभुज आसन। इस आसन को 30 सेकेंड तक 5 से 10 बार गहरी सांसें लेने तक किया जाता है। यह आसन हमारे रोग प्रतिरोधक छमता को बढ़ाने वाले आसनों मे सबसे बढ़िया आसनों मैं से एक है।
4)भस्त्रिका योग : इस योग को सीधे बैठकर करे हमारी कमर सिद्धि होनी चाहिए।  मुंह को बंद करके नाक से लंबी सांस ले इसके बाद सांस को छोड़ दे । इस प्राणायाम को 5 मिनट तक करे।
5)भुजंगासन : भुजंगासन को सर्पासन भी कहते है क्योंकि यह सांप के उठे फन की तरह दिखाई देता देता है भुजंगासन सूर्य नमस्कार आसन का ही एक हिस्सा है। भुजंगासन को अष्टांग योग में बेसिक लेवल का आसन माना गया है । इसका अभ्यास हमे 15-30 सेकेंड तक 5-10 लंबी सांसें लेने तक करना चाहिए।
6)भ्रामरी : भ्रामरी प्राणायाम हमारी रोग प्रतिरोधक छमता को कई गुना बढ़ा देता है इस प्राणायाम को करने के लिए घर मैं किसी शांत जगह पर बैठ जाये अपने दोनों हाथों को सर के पास ले जाये अब अपने दोनों अंगूठो से कान के दोनों छिद्र को बंद कर दे। तर्जनी उंगली को माथे पर रख ले बाकी जो उंगलिया बची है उन तेने उंगलियो से अपनी दोनों आंखों को बंद कर लें। इसके बाद गहरी सांस ले और  ओम का उच्चारण करते हुए नाक से साँस को बाहर निकाले। 5 से 7 मिनट तक इस प्राणायाम को करना चाहिए।
7)ताड़ासन : इस आसन को करने के लिए जरूरी है आप खाली पेट हो। इस आसन को आप 20 सेकंड तक करे इस आसन से हमारा पाचनतंत्र बहुत मजबूत हो जाता है
8)योग निद्रा : आप एक स्वछ स्थान पर लेट जाएं। आंखों को बंद करे और सांस को बाहर निकलते हुए पक्षियों के कलरव को सुने। पैर की अंगुलियों पर ध्यान देकर सांस का ध्यान रखना चाहिए। अपनी हथेलियों को ऊपर की तरफ रखना चाहिए। दोनों पैरों के बीच एक फीट की दूरी हाेनी चाहिए। इस पूरी प्रक्रिया में हमे शरीर के हर एक अंग का ध्यान रखते हुए हमे अपनी सांस पर ध्यान देना चाहिए। इस दाैरान नींद नहीं आनी चाहिए। इस योग को आप रोज सुबह कम से कम 45 मिंट तक करे।
इन सभी योग के द्वारा हमारी रोगप्रतिरोधक छमता बोहोत बढ़ जाती ओर  हमारा मन एकाग्र होता जाता है और हमारे फेफड़ो की कार्यशीलता बढ़ती जाती है जिससे कि शरीर में मन, बुद्धि, चेतना का विकास विस्तार  दिन प्रतिदिन होता रहता है।
आयुर्वेद से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाये।
रसायन आयुर्वेद मे रोग प्रतिरोधक क्षमता वृद्धि में बहुत मददगार होते हैं। यहाँ रसायन का मतलब केमिकल बिल्कुल भी नहीं है। कोई भी ऐसा प्रॉडक्ट जो एंटिऑक्सिडेंट हो रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाला हो और स्ट्रेस को कम करटता हो उसको रसायन कहते है। जैसे कि त्रिफला, ब्रह्मा रसायन आदि, लेकिन च्यवनप्राश को आयुर्वेद में सबसे अच्छा रसायन माना गया है। क्योंकि इसे बनाने में मुख्य रूप से ताज़े आंवले का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें अश्वगंधा, शतावरी, गिलोय समेत 40 जड़ी बूटियां डाली जाती हैं। अगर अलग करके देखें तो आंवला, अश्वगंधा, गिलोय ओर शतावरी का रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में जबर्दस्त योगदान है। मेडिकल साइंस की माने तो अगर हमारे शरीर में आईजीई का लेवल कम होने पर रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत बढ़ जाती है। यह भी देखा गया है कि च्यवनप्राश खाने से शरीर में आईजीई का लेवल कम हो जाता है।
रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में, हल्दी, अश्वगंधा, आंवला, शिलाजीत, मुलहठी, तुलसी, लहसुन, गिलोय जैसी ओषधियाँ खास है।
जंक फूड से जितना ही सके उतना बचे क्योंकि जंक फूड हमारे पाचन तंत्र को कमजोर करता है जिससे कि हमारी रोग प्रतिरोधक छमता कम हो जाती है।

रानी नायिकी देवी सोलंकी की तलवार की वार ने मुहम्मद गोरी को नपुंसक बना दिया था।

naikiजय श्री राम मनीषा सिंह कि तेज कलम से ।
एक वीरांगना जिसको इतिहास से मिटा दिया गया ।
एक वीरांगना जिससे मुहम्मद गोरी थर्राता था ।
एक वीरांगना जिसने युद्ध में मुहम्मद गोरी की गुदा फाड़ कर रख दिया था अपनी तलवार की वार से ।
ऐसे वीरांगना को मुस्लिम तुष्ठिकरण करनेवालों ने मिटा दिया इतिहास से ।

मैकोले की शिक्षा पद्धति और वामपंथ रोग से ग्रषित इतिहासकार आपको यह सब इतिहास की कक्षा में कभी नहीं बताएँगे ।
इतिहासकारों ने भारत की इस वीरांगना का उल्लेख कभी नहीं करते हैं, जब वे भारत के महान महिलाओं का उल्लेख करते है तब ।
फिर भी, वह हर महिला सशक्तिकरण अभियान के (आइकॅन) अनुप्रतीक होने की हकदार हैं। महान भारतियों पर लिखी हर किताब की पहला अध्याय में होने चाहिये। उस महान वीरांगना का नाम है गुजरात की रानी नायिकी देवी ।
तारीख:

1178 ईस्वी
जगह:

माउंट आबू

ज़्यादातर लोगों को नहीं पता होगा मुहम्मद गोरी को दो चीज़ की नशा थी एक खून की दूसरा हवस की गोरी एक हवसी दरिन्दा था उनकी हवस की लत ने उसे नपुंसक बना दिया था, या वह नपुंसक पैदा हुआ था, या नायिकी देवी की तलवार ने उसे नपुंसक बना दिया था – यह हम नहीं जानते। मुहम्मद गोरी किसी को नहीं बक्श्ता था औरत , मर्द , बच्चे यौन-गुलाम बनाकर रखता था बाद में वह अपने यौन-गुलामों को अपने राज्य का वारिस बना दिया था । उसने जितने भी युद्ध किये उन सभी लड़ाईयों में जिहादी गोरी ने औरतों एवं नाबालिक कन्याओं का सामूहिक बलात्कार किया एवं वृद्ध पुरुष एवं वृद्ध महिलाओं को कसाइयों की तरह मौत के घाट उतार देता था । युवा , महिलाओं और बच्चों को यौन गुलाम बना दिया जाता था ।

भारत सबसे महत्वपूर्ण देश था जिहादियो के लिए पहला खलीफा शासन के बाद जिहादियो ने भारत पर कई आक्रमण किये पर कामयाब नहीं हो पाया भारत देश मूर्ति पूजको का देश रहा हैं प्राचीन आदि अनंत काल से इसलिए भारत को तबहा करना इनका हमेसा से कोशिश रहा एक भारत के अलावा सम्पूर्ण विश्व इनके कब्जे में आगया था और ६२० ईस्वी में इस्लाम के जन्म के साथ मूर्ति पूजको पर बहुत क्रूर अत्याचार किया गया था भारत के अलावा भी जितने भी मूर्ति पूजक देश थे उन सबका अस्तित्व मिटा दिया गया तलवार के बल पर भारत एक अंतिम मूर्ति पूजक देश रह गया कुरान के मुताबिक जिहादी हिन्दू महिलाओं, बच्चों, और पुरुषों के साथ कुछ भी करने को आसमानी किताब के अनुसार अधिकार रखते हैं । मुहम्मद गोरी मुल्तान जीतने के बाद (जो अभी पाकिस्तान के पंजाब में है). गुजरात के मार्ग से होते हुए भारत के अन्य राज्य को भी जिहाद के खुनी खेल से तबाह करना चाहता था ।

मुहम्मद गोरी ने गुजरात की रानी नायिकी देवी की खूबसूरती के बारे में काफी कुछ सुन रखा था । रानी नायिकी देवी अपने नवजात शिशु भीमदेव सोलंकी को साथ लेकर गुजरात की राजपाठ चलाती थी और गुजरात राज्य के धन समृद्धि से परिपूर्ण एक वैभवशाली राज्य था। इतना सब सुनने के बाद नरपिशाच मुहम्मद गोरी खुद को रोक नहीं पाया और ६५००० से ७३००० की बड़े पैमाने में जिहादी लूटेरो की सेना के साथ अन्हील्वारा गुजरात की राजधानी की और निकल पड़ा ।
रानी नायिकी देवी को ज्ञात था की उनका मुकाबला किस दरिन्दे से होनेवाला हैं उनके पास जितने भी सेना बल थे सबको इकत्रित कर के गुजरात की सीमा की और बड़ी और रानी नायिकी देवी ने रणनीति के तेहत अपनी सेनाओ को तैयार किया गुजरात सीमा के अन्दर आने से रोकना हैं बलात्कारी हत्यारों की सेना को गुजरात सीमा के बहार खदेरना हैं जितना संभव हो पाएगा ताकि कम से कम गुजरात की स्त्रियों एवं कन्याओं को भागने का वक़्त मिले या तो प्राण त्यागने तक का वक़्त मिले जिससे महिलाऐं एवं कन्या लूटेरो के हाथ से अपनी मान भंग एवं अश्मिता को लूटने से खुदको बचा पायें ।
दोनों सेना कायादारा में मिले गुजरात राजधानी से चालीस मिल दूर ।
गोरी ने सन्देश भेजा –“ रानी और उसके बच्चे को मुझे सौंप दो और तुम सभी अपनी अपनी महिलाओं एवं कन्याओं के साथ अपनी धन दौलत सब मुझे दे दो तो मैं तुम्हे बक्श दूंगा”
रानी घबरायी नहीं वह इसे सुन कर हंसी उसने (होनेवाले राजा) नवजात शिशु भीमदेव को अपने साथ बांध लिया और घोड़े पर सवार होकर गोरी के दूत को महारानी ने आदेश दिया बोली “जाओ जाकर गोरी से कह दो उनकी शर्तें मान लिया हैं हमने । ”
रानी नायिकी देवी द्वारकाधीश श्री कृष्णा के पास गई मौन रह कर कुछ क्षण प्रार्थना की और फिर जोर से बोल उठी ‘जय द्वारकाधीश “।
गोरी का दूत गोरी के पास आकर जैसे ही खुशखबरी सुनाता है की उनकी साड़ी शर्ते मान ली गयी हैं गोरी ख़ुशी से पागल हो जाता हैं वह आसान जीत की जश्न मानाने लगा । वह रानी एवं उनके प्यारे बच्चे के साथ कामवासना के सपने देखने लगा था।
नरपिशाच गोरी ने अपने शिविर से बहार निकलकर सोलंकी के सैन्य शिविर की और देखने लगा तभी उसे नज़र आया कोई घोड़े पर सवार होकर उसके सैन्य शिविर की और आ रहे थे । धुल उड़ना जैसे ही बंद हुआ और घुड़सवार हुए इंसान जैसे जैसे नज़दीक आते गए वह देखा की एक खुबसूरत महिला अपने बच्चे को अपने साथ बांधकर उसकी और आ रही हैं । अचानक से रानी नायिकी देवी की घोड़े की कदम रुक गई मुहम्मद गोरी असमंजस में रह गया अचानक रानी की घोड़े की कदम रुकते देख इससे पहले की वह कुछ समझ पाता उसने देखा उसके शिविरों की और हाथी एवं घोड़े के साथ रानी नायिकी देवी की सेनाओं का शैलब आ रहा हैं रानी की सैन्य का शैलाब रेगिस्तानी इलाके को घेर लिया था इससे पहले की गोरी वासना के स्वप्न से बहार निकलकर युद्ध के लिए तैयार होता तीन तरफ़ से वह और उसकी शिविर को घेर लिया गया था । मुहम्मद गोरी ने कहा “हिन्दू कैसे इतना तेजी से हमला कर सकता हैं जब की पैगम्बर ने बताया था की एक मुसलमान दस काफ़िर हिन्दू के बराबर हैं , मुझे लगा मुझे जन्नत की कुंवारी हूर से ज्यादा खुबसूरत औरत को भोगने का आनंद मिलेगा काफिरों की धरती पे ” । गोरी के पास अब कुछ समझने का वक़्त नहीं था वह घोड़े पे चढ़कर अपने शिविर के अन्दर आया । गुजरात के वीर राजपूतो ने एक के बाद एक जिहादी सुवरो को काटते रहे रानी नायिकी देवी के सेनापति ने बताया की क्यों भारतवर्ष को शेरो की धरती कहा जाता हैं । गोरी के पास केवल एक रास्ता बचा था अपनी जान बचाकर भागने का ।
रानी नायिकी देवी के दोनों हाथो में तलवार थी साक्षात् दुर्गा बन अवतारित हुयी रानी नायिकी देवी जी ने एक के बाद एक अनगिनत जिहादी आक्रमणकारियों की सर धर से अलग करती गई जो हाथ उसकी और बढ़ रहा था वह सारे हाथ एक के बाद एक काटती गयी अब गोरी की और बढ़ी जिहादी गोरी का दमन करने के लिये । गोरी उनकी (रानी नायिकी देवी) एक झलक पा कर डर के भागने लगा अभी रानी नायिकी देवी साक्षात् मृत्यु की स्वरुप बन गई थी वह तेज़ी से भागने लगा रानी ने एक तलवार फेंककर घोड़े की लगाम को खींचते हुए वह अपने शिकार की और चल पड़ी इस बिच जो भी उसके रास्ते में आया उन सब सुवरो के सर को धर से अलग करती गयी ।
अंत में वह अपने शिकार के काफी करीब पहुँच चुकी थी पूरी ताकत के साथ तलवार से हमला किया लेकिन चुक गई क्यों की गोरी के जिहादी सिपाही ने पीछे से हमला कर रानी नायिकी देवी को घायल कर दिया था और यह चुक भारत के इतिहास में बहुत महंगा साबित हुआ ।
रानी नायिकी देवी की तलवार की वार से जान तो बच गया परन्तु तलवार की वार इतनी तेज थी की गोरी अपना गुदा (anal) को नहीं बचा पाया पीछे का हिस्सा हड्डी के साथ निकल गया था इससे पहले की रानी नायिकी देवी दूसरा हमला करती , गोरी के ५०० जिहादी सुवरो ने रानी नायिकी देवी को घेर लिया और गोरी बच निकला ।
इसके बाद गोरी के जिहादी गुंडों के पीछा कर रानी नायिकी देवी की सेना ने कुचल डाला । गोरी इतना डर गया था की उसके घाव से खून बहने के बाद भी वह घोड़े से नहीं उतरा था मुल्तान लौट कर घोड़े से उतरा । गोरी ने अपने सैनिको को हुकुम दिया घोड़ा किसी हाल पे नहीं रुकना चाहिए उसे नींद आजाये या कितनी भी इलाज की ज़रूरत पड़ जाए पर घोड़ा मुल्तान गंतव्य पहुँच के ही रुकना चाहिए ऐसा हुकुम दे रखा था । और अगर घोड़ा कही रुक जाए थक कर तो उसे दुसरे घोड़े पे बैठा कर ले जाने का हुकुम दिया गया जब गोरी मुल्तान पहुंचा गोरी पूरी तरह से खून से लतपथ था उसे पता चला की आगे (गुप्तांग) और पीछे गुदा (हिंदी) , anal (english) खो चूका था हमेसा के लिए नपुंसक बन गया था रानी नायिकी देवी की तलवार की वार से ।
गोरी गुजरात पे दोबारा हमला करने के बारे में सोचने की हिम्मत तक नहीं किया। अगले १३ (तेराह) वर्षो तक भारतवर्ष पर गोरी ने आक्रमण नहीं किया था। दिल्ली नरेश सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने उस समय रानी नायिकी देवी की सहायता की थी कर्नल टॉड एवं अन्य पुस्तकों से यह साक्षय मिला दिल्ली नरेश सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने एक छत्र शाशन स्थापित कर के ५ राज्यों के राजाओं से रानी नायिकी देवी की सहायता के लिए सेना की टुकड़ी भेजी थी।
रानी नायिकी देवी की काल अवतार का दर्शन प्राप्त करने के बाद मानसिक रूप से एवं रानी नायिकी देवी की तलवार की वार से शारीरिक रूप से नपुंसक बनने के बाद गोरी की कामेच्छा हमेशा के लिए समाप्त हो गयी थी – मानसिक और शारीरिक रूप से । गोरी जब तक जीवित रहा वह उस राजपूतानी के तलवार की धार को कभी नहीं भुला पाया । लड़ाई के लिए अब वह असमर्थ हो चूका था उसे अब अपने दासो पर निर्भर होना पड़ा । उसे कोई बच्चा नहीं हो पाया इसलिए उसने अपनी साड़ी सम्पत्ति एवं राज्य उसके द्वारा बनाये गये यौन गुलामो में बाँट दिया अपनी जान बचाने के लिये ।

इस्लामी शासन एक मिथक:
रानी नायिकी देवी जैसी वीरता की मूर्ति यह साबित करती हैं की भारत में स्थायी रूप से इस्लामिक शासन कोई नहीं स्थापित कर पाया था ऐतिहासिक नक़्शे कासिम से लेकर औरंगजेब तक के शाशन काल तक का सब धोखा हैं अप्रमाणित हैं (वामपंथी इतिहासकारों ने 1957 से इतिहास लिखना शुरू किया था इन मार्क्स के लाल बंदरो ने जहा जहा मुस्लिम बहुल इलाके का नक्षा मिला 1939 से लेकर 1950 तक का उसीको औरंगजेब एवं मुग़ल , अफ़ग़ान , तुर्क इत्यादि लूटेरो की राजधानी बना दिया और उनके द्वारा शाशित किये गए राज्य बना दिए) ।
आक्रमणकारियों को रोका जाता था कही ना कही जैसे छत्रपति शिवाजी महाराज जी ने मुग़ल के क्रूर शासक औरंगजेब की कब्र महारष्ट्र में ही खुदवा दिया पर उसके सम्पूर्ण दक्कन पे राज करने का ख्वाब पूरा नहीं हो पाया कभी ।
वामपंथ इतिहासकार ने इतिहास में मुगलों को भारत विजय का ताज पहना दिया हकीकत में हिन्दू राजाओ एवं दुर्गा स्वरुप रानी से पराजय होकर जिहादी लूटेरो को वापस अरब के रेगिस्तान में लौटना पड़ा ।

क्या आपने एक महान वीर योद्धा “सरदार हरि सिंह नलवा” का इतिहास पढ़ा है?

Hari Singh Nalwa

सरदार हरि सिंह नलवा (1791-1837) का भारतीय इतिहास में एक सराहनीय एवम् महत्वपूर्ण योगदान रहा है। भारत के उन्नीसवीं सदी के समय में उनकी उपलब्धियों की मिसाल पाना महज असंभव है। इनका निष्ठावान जीवनकाल हमारे इस समय के इतिहास को सर्वाधिक सशक्त करता है। परंतु इनका योगदान स्मरणार्थक एवम् अनुपम होने के बावज़ूद भी पंजाब की सीमाओं के बाहर अज्ञात बन कर रहे गया है। इतिहास की पुस्तकों के पन्नो भी इनका नाम लुप्त है। आज के दिन इनकी अफगानिस्तान से संबंधित उल्लेखनीय परिपूर्णताओं को स्मरण करना उचित होगा। जहाँ ब्रिटिश, रूसी और अमेरिकी सैन्य बलों को विफलता मिली, इस क्षेत्र में सरदार हरि सिंह नलवा ने अपनी सामरिक प्रतिभा और बहादुरी की धाक जमाने के साथ सिख-संत सिपाही होने का उदाहरण स्थापित किया था। आज जब अफगान राष्ट्रपति अहमदज़ई की सरकार भ्रष्टाचार से जूझ रही है, अपने ही राष्ट्र की सुरक्षा जिम्मेदारियों के लिये अंतरराष्ट्रीय बलों पर निर्भर है और अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा के लगभग 300,000 अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान में तैनात, तालिबानी उग्रवादियों की आंतकी घटनाओं से बुरी तरह संशयात्मक है, यह जानना अनिवार्य है कि हरि सिंह नलवा ने स्थानीय प्रशासन और विश्वसनीय संस्थानों की स्थापना कर यहाँ पर प्रशासनिक सफलता प्राप्त की थी। यह इतिहास में पहली बार हुआ था कि पेशावरी पश्तून, पंजाबियों द्वारा शासित थे। जिस एक व्यक्ति का भय पठानों और अफगानियों के मन में, पेशावर से लेकर काबुल तक, सबसे अधिक था; उस शख्सीयत का नाम जनरल हरि सिंह नलुवा है। सिख फौज के सबसे बड़े जनरल हरि सिंह नलवा ने कश्मीर पर विजय प्राप्त कर अपना लौहा मनवाया। यही नहीं, काबुल पर भी सेना चढ़ाकर जीत दर्ज की। खैबर दर्रे से होने वाले इस्लामिक आक्रमणों से देश को मुक्त किया। इसलिये रणनीति और रणकौशल की दृष्टि से हरि सिंह नलवा की तुलना दुनिया के श्रेष्ठ जरनैलों से की जाती है।

सरदार हरि सिंह नलवा का नाम श्रेष्ठतम सिक्खी योद्धाओं की गिनती में आता है। वह महाराजा रणजीत सिंह की सिख फौज के सबसे बड़े जनरल (कमांडर-इन-चीफ) थे। महाराजा रणजीत सिंह के साम्राज्य (1799-1849) को सरकार खालसाजी के नाम से भी निर्दिष्ट किया जाता था। सिख साम्राज्य, गुरू नानक द्वारा शुरू किये गए आध्यात्मिक मार्ग का वह एकगरत रूप था जो गोबिंद सिंह ने खालसा की परंपरा से निश्चित कर के संगठित किया था। गोबिंद सिंह ने मुगलों के खिलाफ प्रतिरोध के लिए एक सैन्य बल की स्थापना करने का निर्णय लिया था। खालसा, गुरु गोबिंद सिंह की उक्ति की सामूहिक सर्वसमिका है । 30 मार्च 1699 को गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा मूलतः “संत सैनिकों” के एक सैन्य शक्ति के रूप में स्थापित किया। खालसा उनके द्वारा दिया गया उन सब चेलों का नाम था जिन्होंने अमृत संचार अनुष्ठान स्विकार करके पांच तत्व- केश,कंघा,कड़ा,कच्छा,किरपान का अंगीकार किया्। वह व्यक्ति जो खालसा में शामिल किया जाता,एक खालसा सिख या अम्रित्धारी कहलाता। यह परिवर्तन संभवतः मूलमंत्र के तौर से मानसिकता का जैसे हिस्सा बन जाता और आत्मविश्वास को उत्पन्न करके युद्ध भूमि में सामर्थ्य प्राप्त करने में सफलता प्रदान करता।

पिछली आठ सदियों की लूटमार, बलात्कार, और इस्लाम के जबरन रूपांतरण के बाद सिखों ने भारतीय उपमहाद्वीप के उस भाग में अपने राज्य की स्थापना की जो सबसे ज़्यादा आक्र्मणकारियों द्वारा आघात था। अपने जीवनकाल में हरि सिंह नलवा, इन क्षेत्रों में निवास करने वाले क्रूर कबीलों के लिए एक आतंक बन गये थे। आज भी उत्तर पश्चिम सीमांत (नौर्थ वेस्टन प्रोविन्स) में एक प्रशासक और सैन्य कमांडर के रूप में हरि सिंह नलवा का प्रदर्शन बेमिसाल है। हरि सिंह नलवा की शानदार उपलब्धियाँ ऐसे हैं कि वह गुरु गोबिंद सिंह द्वारा स्थापित परंपरा का उदाहरण देती हैं और उन्हें इसलिये सर हेनरी ग्रिफिन ने “खालसाजी का चैंपियन” के नाम से सुसज्जित किया है। ब्रिटिश शासकों ने हरि सिंह नलवा की तुलना नेपोलियन के प्रसिद्ध कमांडरों से भी की है।

हरि सिंह नलवा ने महाराजा रणजीत सिंह के निर्देश के अनुसार सिख साम्राज्य की भौगोलिक सीमाओं को पंजाब से लेकर काबुल बादशाहत के बीचोंबीच तक विस्तार किया था। महाराजा रणजीत सिंह के तहत 1807 ई. से लेकर तीन दशकों की अवधि 1837 ई. तक, सिख शासन के दौरान हरि सिंह नलवा लगातार अफगानों के खिलाफ लड़े। अफगानों के खिलाफ जटिल लड़ाई जीतकर नलवा ने उनकी मिट्टी पर कसूर, मुल्तान, कश्मीर और पेशावर में सिख शासन की अर्थव्यवस्था की था। हरि सिंह नलवा के जीवन के परीक्षणों का वर्णन, उन्नीसवीं सदी की पहली छमाही में सिख-अफगान संबंधों का प्रतिनिधित्व है। काबुल बादशाहत के तीन पश्तून वंशवादी के प्रतिनिधि सरदार हरि सिंह नलवा के प्रतिद्वंदी थे। पहले अहमद शाह अबदाली का पोता, शाह शूजा था; दूसरा, फ़तह खान, दोस्त मोहम्मद खान और उनके बेटे, तीसरा, सुल्तान मोहम्मद खान, जो जहीर शाह अफगानिस्तान के राजा का पूर्वज (1933 -73) था।

सिंधु नदी के पार, उत्तरी पश्चिम क्षेत्र में, पेशावर के आसपास, अफगानी लोग कई कबीलों में विभाजित थे। आज भी अफगानिस्तान के विभिन्न कबीले कितने ही वर्षो से आपस में लड रहे हैं। किसी भी नियम के पालन के परे, आक्रामक प्रवृत्ति इन अफ़गानों की नियति है। पूरी तरह से इन क्षेत्रों का नियंत्रण करना हर शासन की समस्यात्मक चुनौती रही है। इस इलाके में सरदार हरि सिंह नलवा ने सिंधु नदी के पार, अपने अभियानों द्वारा अफगान साम्राज्य के एक बड़े हिस्से पर कब्ज़ा करके, सिख साम्राज्य की उत्तर पश्चिम सीमांत को विस्तार किया था। नलवे की सेनाओं ने अफ़गानों को दर्रा खैबर के उस ओर बुरी तरह खदेड कर इन उपद्रवी कबायली अफ़गानों/पठानों की ऐसी गति बनाई कि परिणामस्वरूप हरि सिंह नलवा ने इतिहास की धारा ही बदल दी।

ख़ैबर दर्रा पश्चिम से भारत में प्रवेश करने का एक महत्वपूर्ण मार्ग है। ख़ैबर दर्रे के ज़रिया 500 ईसा पूर्व में यूनानियों के साथ भारत पर आक्रमण करने, लूटने और गुलाम बनाने की प्रक्रिया शुरू हुई। आक्रमणकारियों ने लगातार इस देश की समृध्दि को तहस-नहस किया। यूनानियों, हूणों और शकों के बाद अरबों, तुर्कों, पठानों, मुगलों के कबीले लगभग एक हजार वर्षों तक इस देश में हमलावर बनकर आते रहे। तैमूर लंग, बाबर और नादिरशाह की सेनाओं के हाथों भारत बेहद पीड़ित हुआ था। हरि सिंह नलवा ने ख़ैबर दर्रे का मार्ग बंद करके इस ऐतिहासिक अपमानित प्रक्रिया का पूर्ण रूप से अन्त कर दिया था। प्रसिद्ध सिख जनरलों में सबसे महान योद्धा माने गये इस वीर ने अफगानों को पछाड़ कर यह निम्नलिखित विजयो में भाग लिया: सियालकोट (1802), कसूर (1807), मुल्तान (1818), कश्मीर (1819), पखली और दमतौर (1821-2), पेशावर (1834) और ख़ैबर हिल्स में जमरौद (1836) । हरि सिंह नलवा कश्मीर और पेशावर के गवर्नर बनाये गये। कश्मीर में उन्होने एक नया सिक्का ढाला जो ‘हरि सिन्गी’ के नाम से जाना गया। यह सिक्का आज भी संग्रहालयों में प्रदर्शन पर है. हजारा, सिंध सागर दोआब का विशिष्ट भाग, उनके शासन के तहत सभी क्षेत्रों में से सबसे महत्वपूर्ण इलाका था। हजारा के संकलक ने लिखत में दर्ज किया है कि उस समय केवल हरि सिंह नलवा ही अपने प्रभावी ढंग के कारण, एक मजबूत हाथ के द्वारा इस जिले पर नियंत्रण कर सकते थे।

नोशेरा के युद्ध में स. हरि सिंह नलवा ने महाराजा रणजीत सिंह की सेना का कुशल नेतृत्व किया था। रणनीति और रणकौशल की दृष्टि से हरि सिंह नलवा की तुलना दुनिया के श्रेष्ठ सेनानायकों से की जा सकती है।
महाराजा रणजीत सिंह की नौशेरा के युद्ध में विजय हुई।

पेशावर का प्रशासक यार मोहम्मद महाराजा रणजीत सिंह को नजराना देना कबूल कर चुका था। मोहम्मद अजीम, जो कि काबूल का शासक था, ने पेशावर के यार मोहम्मद पर फिकरा कसा कि वह एक काफिर के आगे झुक गया है। अजीम काबूल से बाहर आ गया। उसने जेहाद का नारा बुलन्द किया, जिसकी प्रतिध्वनि खैबर में सुनाई दी। लगभग पैंतालिस हजार खट्टक और यूसुफ जाई कबीले के लोग सैय्‌यद अकबर शाह के नेतृत्व में एकत्र किये गये। यार मोहम्मद ने पेशावर छोड़ दिया और कहीं छुप गये। महाराजा रणजीत सिंह ने सेना को उत्तर की ओर पेशावर कूच करने का आदेश दिया। राजकुमार शेर सिंह, दीवान चन्द और जनरल वेन्चूरा अपनी – अपनी टुकड़ियों का नेतृत्व कर रहे थे। सरदार हरि सिंह नलवा, अकाली बाबा फूला सिंह, फतेह सिंह आहलुवालिया, देसा सिंह मजीठिया और अत्तर सिंह सन्धावालिये ने सशस्त्र दलों और घुड़सवारों का नेतृत्व किया। तोपखाने की कमान मियां गोस खान और जनरल एलार्ड के पास थी।
भारत में प्रशिक्षित सैन्य दलों के इतिहास में महाराजा रणजीत सिंह द्वारा बनायी गयी गोरखा सैन्य टुकड़ी एक ऐतिहासिक घटना था। गोरखा पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले थे और पेशावर और खैबर दर्रे के इलाकों में प्रभावशाली हो सकते थे। महाराजा रणजीत सिंह ने पूरबी (बिहारी) सैनिक टुकड़ी का निर्माण भी किया था। इस टुकड़ी में ज्यादातर सैनिक पटना साहिब और दानापुर क्षेत्र के थे, जो कि गुरू गोबिन्द सिंह जी की जन्म स्थली रहा है। सरदार हरि सिंह नलवा की सेना शेर-ए-दिल रजामान सबसे आगे थी। महाराजा की सेना ने पोनटून पुल पार किया। लेकिन बर्फबारी के कारण कुछ दिन रूकना पड़ा। महाराजा रणजीत सिंह के गुप्तचरों से ज्ञात हुआ था कि दुश्मनों की संख्या जहांगीरिया किले के पास बढ रही थी। उधर तोपखाना पहुंचने में देर हो रही थी और उसकी डेढ महीने बाद पहुंचने की संभावना थी। स्थितियां प्रतिकूल थी।
सरदार हरि सिंह नलवा और राजकुमार शेर सिंह ने पुल पार करके किले पर कब्जा कर लिया। लेकिन अब उन्हें अतिरिक्त बल की आवश्यकता थी। उधर दुश्मन ने पुल को नष्ट कर दिया था। ऐसे में प्रातः काल में महाराजा स्वयं घोड़े पर शून्य तापमान वाली नदी के पानी में उतरा। शेष सेना भी साथ थी। लेकिन बड़े सामान और तोपखाना इत्यादि का नुकसान हो गया था। बन्दूकों की कमी भी महसूस हो रही थी। बाबा फूला सिंह जी के मर-जीवड़ों ने फौज की कमान संभाली। उन्होने बहती नदी पार की। पीछे-पीछे अन्य भी आ गये। जहांगीरिया किले के पास पठानों के साथ युद्ध हुआ। पठान यह कहते हुए सुने गये – तौबा, तौबा, खुदा खुद खालसा शुद। अर्थात खुदा माफ करे, खुदा स्वयं खालसा हो गये हैं।
सोये हुए अफगानियों पर अचानक हमले ने दुश्मन को हैरान कर दिया था। लगभग १० हजार अफगानी मार गिराये गये थे। अफगानी भाग खड़े हुए। वे पीर सबक की ओर चले गये थे।
गोरखा सैनिक टुकड़ी के जनरल बलभद्र ने अफगानी सेना को बेहिचक मारा काटा और इस बात का सबूत दिया कि उन विशिष्ट परिस्थितियों में गोरखा लड़ाके कितने कारगर थे। उन्होने जेहादियों पर कई आक्रमण किये। लेकिन अन्त में घिर जाने के कारण बलभद्र शहीद हो गये। सरदार हरि सिंह नलवा, अकाली फूला सिंह और निहंगों की सशक्त जमात जमकर लड़ी। जनरल वेन्चूरा घायल हो गये। अकाली फूला सिंह के घोड़े को गोली लगी। वह एक हाथी पर चढने की रणनीतिक भूल कर बैठे। वे ओट से बाहर आ गये थे और जेहादियों ने उन्हें गोलियों से छननी कर दिया। वे शहीद हो गये।

अप्रैल 1836 में, जब पूरी अफगान सेना ने जमरौद पर हमला किया था, अचानक प्राणघातक घायल होने पर नलवा ने अपने नुमायंदे महान सिंह को आदेश दिया कि जब तक सहायता के लिये नयी सेना का आगमन ना हो जाये उनकी मृत्यु की घोषणा ना की जाये जिससे कि सैनिक हतोत्साहित ना हो और वीरता से डटे रहे। हरि सिंह नलवा की उपस्थिति के डर से अफगान सेना दस दिनों तक पीछे हटी रही। एक प्रतिष्ठित योद्धा के रूप में नलवा अपने पठान दुश्मनों के सम्मान के भी अधिकारी बने।

साभार-:मनीषा सिंह(छत्रपतींची वाघिणी)

आतंकवादी समर्थकों का हाल तो देखिये गिरफ़्तारी से पहले ही तैयार खड़े है।

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नई दिल्ली/मुंबई : एक जमाने में अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा शकील को गिरफ्तार कर चुके मुंबई पुलिस के पूर्व एसीपी शमशेर पठान, जाकिर नाईक के समर्थन में आए हैं. पठान ने कहा है कि वो जाकिर को कानूनी मदद के लिए भी तैयार हैं. इस बीच जाकिर की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं. भारत के साथ बांग्लादेश में भी जांच चल रही है.

पठान की पहचान यह है कि अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम का गुर्गा छोटा शकील जब एकमात्र बार मुंबई में गिरफ्तार हुआ था, तो इन्होंने ही उसकी गिरफ्तारी की थी. पठान अवामी विकास पार्टी नाम का एक राजनीतिक दल भी चलाते हैं. इनका कहना है कि जाकिर नायक को अगर किसी भी तरह की कानूनी मदद की जरूरत पड़ी तो यह उसको सहयोग देंगे.

इस बीच इस्लाम के विवादित प्रचारक जाकिर नाईक को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है. जाकिर नाईक पर 2009 से आईबी की नजर थी. 2009 से 2014 तक तीन बार आईबी ने गृह मंत्रालय को अलर्ट किया था. लेकिन, कोई कार्रवाई नहीं हुई. आईबी ने अपनी रिपोर्ट में जाकिर नाईक के भाषणों को जहरीला और भड़काऊ बताया था.

जाकिर की संस्था इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन को मिलने वाले विदेशी चंदे पर भी सवाल उठाए थे. चंदा तो सामाजिक कामों के लिए मिलता था लेकिन आईबी ने अलर्ट किया था कि चंदे से धार्मिक काम किए जा रहे हैं. इसके साथ ही मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर और बीजेपी सांसद ने भी दावा किया है कि उन्होंने जाकिर को लेकर अलर्ट भेजा था.

आतंकवादी बुरहान के जनाजे में इतनी भीड़, कौन थे ये लोग आतंकवादी?

जम्मू-कश्मीर– कश्मीर मैं सेना व आतंकियों के बेवह मुठभेड़ में आतंकी बुरहान बानी मारा गया है। बुरहान की मौत के बाद कश्मीर मैं तनाव पैदा हो गया है व ज्यादातर जगह कर्फ्यू लगा हुआ है व इंटरनेट सेवा बन्द कर दी गयी है।

कश्मीर के लोग बुरहान वानी के समर्थन मैं हिंदुस्तान के खिलाफ बिरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। बुरहान वानी का जनाजा निकाला गया तो उसके जनाजे मैं लाखों की तादात मैं भीड़ थी, जो सरेआम हिंदुस्तान मुर्दाबाद व पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगा रही थी। एक आतंकवादी के जनाजे मैं इतनी भीड़ आखिर क्या साबित करती है? आखिर ये क्यू होता है कि हिंदुस्तान के खिलाफ काम करने वालों को इतना समर्थन क्यू मिलता है??? आखिर क्यू गद्दारों व आतंकियों को इतना समर्थन मिलता है? आखिर क्यू हम इन आस्तीन के साँपों को पाल रहे हैं जो हमें ही डस रहे हैं? एक आतंकवादी के जनाजे मैं इतनी भीड़ यही साबित करती है कि कश्मीर घाटी के लोग बुरहान को अपना आदर्श मानते हैं व उसके बताये रस्ते पर चलने को तैयार हैं। आतंकवादी बुरहान को क्रन्तिकारी बताया जा रहा है।

हिन्दुओ! मौत का साया तुम्हारे सर पर मंडरा रहा है, ये लोग जो बुरहान के समर्थन मैं प्रदर्शन कर रहे हैं ये सब आगे चलकर हिंदुस्तान को बर्बाद करने के प्रमुख सूत्रधार होंगे।।।

फिर भी हमारी सरकार हमारा कानून क्यू झेल रहा है क्यू सेना पर पत्थर फैंके जा रहे हैं? क्यू इन सबको भून नहीं देती सरकार?

आखिर ये गद्दारी कब तक सहेंगे?
फिर भी कहते हैं कि आतंक का कोई धर्म नहीं होता, जबकि बुरहान के दफन से पहले लाखों मुस्लिम बुरहान के लिए नमाज पड़ते हैं, अल्लाह हू अकबर बोलते हैं,,,, कोई बताएगा कि नमाज किस धर्म में पड़ी जाती है, अल्लाह हू अकबर किस धर्म की इबादत है, फिर भी आतंक का कोई धर्म नहीं होता।

इस आतंकी के जनाजे मैं इतनी भीड़ है, वो सारी मुस्लिम समुदाय की है, इसका मतलब आतंक का धर्म होता है……एक ही धर्म… जिसका काम ही आतंक फैलाना है।

सवाल: आतंकवादियों को मुस्लिम धर्म के अनुसार सुपुर्दे ख़ाक क्यों किया जा रहा है?

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अनंतनाग मुठभेड़ में तीन आतंकवादी मारे गए, जिनमें दो की पहचान बुरहान वानी और सरताज अहमद शेख के रूप में हुई है, जबकि तीसरे की पहचान अभी बाकी है।

अनंतनाग में शाम 6.15 बजे शुरू हुई इस मुठभेड़ में बुरहान वाणी को मार गिराया गया। जम्मू एवं कश्मीर पुलिस और 19 आरआर ने मिलकर इस ज्वाइंट ऑपरेशन को अंजाम दिया।

आतंकी बुरहान वानी की हत्या के खिलाफ अलगाववादी आसिया अंद्राबी और एस.ए.एस. गिलानी ने जम्मू एवं कश्मीर में बंद का आह्वान किया।

जम्मू एवं कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि बुरहान हथियार उठाने वाला पहला शख्स नहीं था और न ही आखिरी होगा।

अब सवाल उठता है आतंकवादी को समर्थन करने वाले आतंकवादी न हों यह कैसे हो सकता है।

अखलाख के मरने पर पूरे देश के हिन्दुओ को असहिष्णु घोषित करने वाले आमिर खान ने भी कहा आंतकवाद का कोई धर्म नहीं होता। आज जरुरत है की इन लोगों को ये आतंकवादी समर्थकों की फ़ोटो दिखाए और पूछें ये किस धर्म के लोग है।

देश के गद्दार जो देश के अंदर है कहाँ है अब मानव अधिकारो की बात करने वाले जो इन आंतकियों को लेके सहानुभूति रखते है फ़ौज पर ऊँगली उठाते है आज उन सभी को भी यह फ़ोटो देखनी चाहिए।

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